स्त्री की परिभाषा
एक मांस का लोथड़ा नहीं ,
सम्पूर्ण मनुष्य है ।
वो मनुष्य जिसमें ,
भावनाओं की गंगा बहती है ।
वो मनुष्य जिसके जीवन से ,
एक जीवन सांस लेता है ।
इस जीवन से कई रिश्ते ,
जीवन पाते हैं।
यह मानवी ,अपने जीवन में ,
अनेक भूमिकाएं निभाती है ।
मां ,पत्नी ,बेटी ,बहन , सास,
ननद ,भतीजी , बुआ ,मासी ,
इत्यादि ।
स्त्री केवल देह नहीं,
एक मन मस्तिष्क और आत्मा ,
को धारण करने वाला जीता जागता,
इंसान है जिसमें अनेक अरमान और चाहतें ।
जिसे पूर्ण करने का उसे पूरा और समान ,
अधिकार है।
एक परिश्रमी इंसान ,!
जो अपने सम्पूर्ण जीवन ,
अपने परिवार के लिए जीता है।
घर और बाहर की जिम्मेदारियों को ,
खुशी खुशी निभाता है।
स्त्री को कमज़ोर न समझो ,
स्त्री यदि लक्ष्मी और सरस्वती है तो ,
दुर्गा ,काली और चंडी भी है ।
इसे ह्रदय से आदर सम्मान और स्नेह दो ।
स्त्री सृजन है तो प्रलय भी ,
अति उत्तम होगा यदि समय रहते ,
इसके महत्व और योगदान को समझो ।
इसी में समाज और देश का हित है ।