स्त्री और पुरुष की चाहतें
स्त्री और पुरुष की चाहतें
ताड़का जैसी प्रवृत्ति में श्याम चाहिए,
सुर्पनखा सी स्त्रियां भी राम चाहिए।
शकुनी जैसे चालबाजों का खेल,
रावण सा अभिमान चाहिए, फिर भी मेल।
दुशासन जैसे पुरुषों का बखान,
अपनी करनी पे भी सम्मान चाहिए।
जिनमें सच्चाई का कोई निशान नहीं,
उनके दिल में भी इंसान चाहिए।
स्त्रियां चाहें प्रेम, पर सत्य की राह,
पुरुष मांगें सम्मान, पर हो गरिमा साथ।
अधर्म के पथ पर जो बढ़ते हैं कदम,
उनके जीवन में भी इंसाफ चाहिए।
ये दुनिया का खेल, चाहतों का दौर,
जहां गलतियों को भी माफी चाहिए।
पर सत्य के दीप में जो जलाए रौशनी,
उनके जीवन में ही सच्चा प्रेम चाहिए।