सौर मंडल मेरे घर में!
बचपन में मां ने,
चांद मुझे दिखलाया था,
दूर आसमान में,
चंदा मामा कहलाया था,
मैं भी उसको रोज देखने,
खुले आसमान में जाया करता,
चंदा मामा आ गया है,
कह कह कर पुकारा करता!
एक दिन संयोग से,
गल्ती कर गया बड़ी भारी,
भूल वस क्षति पहुंचा दी ,
मति गई थी मारी,
पिताजी ने चपत लगा दी,
पहले पहल चांटा पड़ा था,
ब्रह्माण्ड सारा दिख रहा था!
भाई बहनों संग धरती नापी,
खेत-खलियान, कृषि बागवानी,
घास पत्तियां बन से लानी,
सुबह शाम को लेकर आते थे पानी,
दोपहर अपनी पाठशाला में कटती,
आते जाते धरती नपती रहती!
यौवन काल जैसे ही आया,
घर गृहस्थी का संसार बसाया,
नून तेल का भाव पता चल गया,
हर रोज एक नया खर्च बढ़ गया,
छोटे छोटे नौनिहालों की परवरिश में,
तपने लगे तब हम तपिश में!
रोज नई फरमाइश होती,
कमाई भी इतनी ना होती,
थोड़ी सी भी कोई कमी रह जाती,
घर में घुसते हुए नानी दादी याद आ जाती,
बच्चों के तुफान में हम ढह जाते,
लक्ष्मी जी तब चंडी बन दिख जाती,
अपने सवालों की बौछार में,
वह दिन में भी तारे दिखला जाती!!
नून तेल के चक्कर में,
झूक गई ये कमर,
चलता रहा इस तरह,
घर परिवार का यह सफर!
झूकी जो कमर,
तो जमी पर पड़ी नजर,
हज़रत अब पुछते हैं,
जवानी गई किधर!?