सौदा
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-‘मै जा रहा हूँ, हमेशा हमेशा के लिए इस घर को छोड़कर’ रमेश ने पेर छूते हुए माँ बाबूजी से कहा l
-‘लेकिन तू कहाँ जाएगा अभी अभी तो तेरी शादी हुई है नई दुल्हन को छोड़ कर भी कोई जाता है भला, चल अपना सामान कमरे में रख, एक दो महीने साथ रह फिर चला जाना’ माँ ने कहा l
-‘ लेकिन माँ रीमा भी मेरे साथ जा रही है ‘
-‘ लेकिन कहाँ’
– ‘अपने माँ बाप के घर’
-‘ लेकिन क्यो इस घर में क्या कमी हे, बचपन से लेकर आज तक तो तू इसी घर में रहा है, ओर आज तू घर जमाई बनने जा रहा है, यह समाज क्या कहेगा कुछ तो शरम कर ‘l
-‘ क्यों माँ, आज समाज की बात कहाँ से आ गयी, यह समाज ओर शरम की बाते उस समय कहाँ थी जब सरेबाजार मेरा सौदा किया गया ओर रीमा के पिता ने आपको मुह मांगी कीमत देकर मुझे खरीद लिया, सौदे में तो यही होता है कि खरीदने वाले की चीज हो जाती है..आपने एक बार भी नहीं सोचा कि आप अपने lइकलोते बेटे को बेच रहे हो, आखिरकार आपने बुराई का साथ क्यों दिया, आपके इस लालच ने रीमा के पिता की जमीन तक बिचवा दी जिससे उनका गुजारा होता था… इस पाप का प्रायश्चित कैसे होगा …यह कहते हुए रमेश धम्म से सोफे पर गिर पड़ा, आज उसने पहली बार अपने माँ बाबूजी से इस तरह बात की थी..
माँ-बाबूजी निरुत्तर अपने लुटते हुए जहां को देख सोच रहे थे कि काश उन्होने दहेज का साथ न दिया होता तो आज बेटे की नजरो में न गिरता……….
राघव दुवे
इटावा (उoप्रo)
8439401034