सौत
अस्पताल में माँ के बैड के बगल में वृद्ध रोगिणी की महिला तीमारदार की लगन और तत्परता देखकर मेरी माँ ने उससे पूँछा ‘ये तुम्हारी कौन हैं क्या सास हैं? ‘ इसके उत्तर में उस महिला ने कहा,’ यह निपूती मेरी सौत है। जब इसका कोई नहीं है तो इसकी देखभाल तो मुझे ही करनी पड़ेगी ना। मैं इसकी कोई सेवा नहीं कर रही हूँ। जो मैंने जिंदगी भर इसके साथ किया है वही अब भी कर रही हूँ -बटवारा। मैंने घर में आते ही धन, सम्पत्ति, रिश्ते- नाते यहां तक कि इसके सुहाग का भी बटवारा कर लिया। मैं चाहती हूँ जैसे मैंने इसके सुखों को बाँट लिया अब उसी तरह दुखों को भी बाँट लूँ। अब आप मेरे इस कार्य को सेवा कहती हैं तो दूसरी बात है।’ मेरी माँ ने हाथ जोड़ कर उसकी भावना को साधुवाद दिया और बुदबुदाई सौत हो तो ऐसी।
जयन्ती प्रसाद शर्मा, दादू ।