” सौग़ात ” – गीत
निरन्तर रहता है गतिमान,
समय का चक्र, चपल, चालाक।
भ्रमित होँ ज्ञानीजन भी क्यों न,
महल होते पल भर मेँ ख़ाक।।
समझ लो गरिमा, “हम” की मित्र,
दिखा दो “मैँ-तुम” को औक़ात।
चलो झँझावातोँ से दूर,
कभी तो ले, हाथों मेँ हाथ।।
प्रेम है सदियों से सिरमौर,
मिले जब वक़्त, करो कुछ बात।
वक़्त के सम्मुख सब कुछ गौण,
किन्तु कब किसके रहता साथ।।
कहे प्रेमी आतुर, ले आस,
दिला अपनेपन का अहसास।
प्रिये, मत करो और अब तँग,
करो कुछ हास और परिहास।।
भोर कल की हो सुखद, सहिष्णु,
ठहर पाया भी कब है आज।
निराशा भी जाएगी बीत,
साथ है, “आशा” की सौग़ात..!
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