सौंप कर तुमको भावों की मंदाकिनी ,,
सौंप कर तुमको भावों की मंदाकिनी ,,
मैं तो बैठा रहा तट के उस और ही ,
भाव संयम नियम आज अवरोध हैं ,
मैं तो कहता रहा बात बदलाव की ।
प्रीति शर्तों के आगे कुछ कह न सकी,
मैं तो लिखता रहा बात स्वीकार की ।
अनकहे अनछुए प्रश्न शामिल रहे,
मैं तो हंसता रहा बात बिन बात की ।
बात ही बात में बात बढ़ सी गयी,
कोई समझा नहीं बात किस बात की।
मौन इतना हठी,अब समझ के परे
भाव झुलसे ,हुई बात नुकसान की ।