Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
13 Sep 2020 · 5 min read

सोसिओ इकोनॉमिक के मार्क्स मेरिट वाले हकदार बच्चों को खत्म कर रहे है.

सोसिओ इकोनॉमिक के मार्क्स मेरिट वाले हकदार बच्चों को खत्म कर रहे है.
————————————————————————————–

( हरियाणा सरकार का तुगलकी आदेश निम्न स्तर के बच्चों को सरकारी नौकरी में ला रहा है. मेरिट वाले मेहनती और प्रतिभाशाली बच्चों के लिए हरियाणा में नौकरी के चांस न के बराबर हो गए है. वोट बैंक के लिए गरीबी और सरकारी नौकरी का हवाला देकर हरियाणा के आने वाले भविष्य को तबाह करने की राह पर है वर्तमान सरकार के बन्दर बाँट वाला ये आदेश. केवल ग्रुप सी और डी में पांच नंबर का एक्स्ट्रा प्रावधान माध्यम वर्ग को खत्म कर रहा है.

बड़े घर के बच्चे देते है बड़ी नौकरी के एग्जाम इसलिए वहां जान-बूझकर नहीं खेला गया एक्स्ट्रा मार्क्स का ये पर्दे वाला खेल ताकि राजनीति के रसूखदार और बड़े घरानों के बच्चों को कोई दिक्क्त नहीं हो.क्या ये सरकार ऐसा कानून भी बनाएगी जिसके तहत चुनाव में बराबर सीटें जीतकर आने वाली पार्टी में से उस पार्टी को एक्स्ट्रा पांच सीट दे दी जाये जिसकी अब तक को सरकार नहीं बनी और उसकी सरकार बन जाये.)

–प्रियंका सौरभ

ये कैसी सरकार है और ये कैसे तुगलकी फरमान?. जी हाँ, हम बात कर रहे है देश की राजधानी दिल्ली से सटे हरियाणा प्रदेश की जहां की वर्तमान सरकार ने अपने वोट बैंक के लिए गरीबों को लुभाने के लिए एक लपलपाती चाल चली है. देश भर में सुर्खिया बंटोर रही हरियाणा सरकार की सरकारी नौकरियों में केवल ग्रुप सी और डी की नौकरियों में एक्स्ट्रा पांच मार्क्स की नीति मेहनती और प्रतिभाशाली बच्चों को एग्जाम में बैठने से पहले ही बाहर का रास्ता दिखा रही है. आज की इस गलाकाट प्रतियोगी परीक्षा में जहाँ मेहनती बच्चे रात-रात भर जागकर सरकारी नौकरी की आस में पूरा जोर लगाकर तैयारी करते है तब जाकर उनको कोई नौकरी नसीब होती है.

मगर हरियाणा प्रदेश की वर्तमान सरकार की तुगलकी नीति देखिये जहां एक-एक मार्क्स से मेहनती बच्चे फाइनल लिस्ट में रह जाते है और अगली बार के लिए कमर कस लेते है वहां ये तुगलकी आदेश रिटेन में पांच नंबर एक्स्ट्रा देकर निम्न स्तर के उम्मीदवारों को चयन में ला रहा है. सोचिये जहाँ बच्चे आधे-आधे मार्क्स के लिए खुद को कोसते है कि काश में एक क्वेश्चन और कर देता वहां किसी निम्न स्तर के बच्चे को पांच नंबर का फायदा देकर मेरिट में पहुँचाना उस मेहनती बच्चे को कितना दुःख दे रहा होगा जो उच्च मार्क्स के बावजूद नौकरी और रोजगार की दौड़ से बाहर हो गया ?

हरियाणा सरकार ने उन घरों के बच्चों के लिए सरकारी नौकरी के लिए एग्जाम में एक्स्ट्रा पांच मार्क्स का प्रावधान किया है जिनके घरों में कोई सरकारी नौकरी नहीं है. कैसा आदेश है ये ??? सीधा तुगलकी फरमान. सरकारी नौकरी न होने के लिए मार्क्स भी एक या दो नहीं पूरे पांच निर्धारित कर दिए. जो किसी को भी मेरिट से बाहर कर दे. आखिर इनकी जरूरत क्या है ? भारत का संविधान आर्थिक और सामाजिक तौर पर पिछड़े लोगों के विकास के लिए तो एक्स्ट्रा प्रावधान करने की वकालत पहले ही करता है लेकिन उनके लिए तो कुछ नहीं कहता कि अमुक के पास ये चीज़ नहीं तो उसके लिए कुछ स्पेसल कर दो. जब पूरे देश भर में पिछड़ों के लिए आरक्षण का प्रावधान है तो ये आरक्षण के ऊपर एक और आरक्षण क्यों ?

यही नहीं ये प्रावधान केवल ए ग्रुप सी और डी के लिए किया गया ताकि माध्यम वर्ग आपस में भिड़े. प्रथम क्लास नौकरी के लिए राजनीति के रसूखदार और अमीर घरों के बच्चे आवेदन करते है इसलिए वहां एक्स्ट्रा मार्क्स का प्रावधान नहीं किया गया. या यूं कहें कि मध्यम वर्ग का गला काट दिया है और उन बच्चों का भविष्य बर्बाद कर दिया जो एक सरकारी चपरासी का बच्चा है और जिसने एक अफसर बनने के या अपने बाप से थोड़ी बड़ी नौकरी के सपने देख लिए.

चपरासी साल में ज्यादा से ज्यादा तीन-चार लाख रूपये तनख्वाह लेता है. जबकि एक व्यापारी या बड़ा जमींदार और दूकान वाला सरकारी चपरासी से दसों गुना ज्यादा कमाता है. इसके बावजूद उस गरीब चपरासी के बच्चे को पांच नंबर नहीं मिलेंगे और लाखों कमाने वाले वाले व्यापारी, जमींदार या दूकान वाले के बच्चों को मिलेंगे. इस तुगलकी फरमान का उद्धरण है हाल ही में हिसार की लाला लाजपतराय विश्विद्यालय द्वारा भर्ती किये गए लैब अटेंडेंट और क्लर्क भर्ती का अंतिम परिणाम. जिनमें सारे के सारे आवेदक वो ही चयनित हुए जिनके पास एक्स्ट्रा मार्क्स थे. मेधावी बच्चे परीक्षा देने, कट ऑफ में आने और डॉक्युमनेट्स वेरफिकेशन तक के मेहमान रहें. आखिरी बाज़ी निमस्तर के सीढ़ी वाले बच्चे हथिया गए.

अब दो प्रश्न ये उठते है कि आखिर उन प्रतिभाशाली बच्चों का क्या कसूर था जो एक्स्ट्रा पांच मार्क्स कि वजह से नौकरी न पा सके? हरियाणा सरकार का तर्क है कि सरकारी नौकरी वाले घरों का आर्थिक स्तर बढ़िया होता है और वो अपने बच्चों को अच्छे स्कूल में पढ़ा सकते है. अब आप ही सोचिये. क्या एक तीन-चार लाख की सालाना आमदनी वाला चपरासी क्या किसी व्यापारी या जमींदार का मुकाबला कर सकता है जो चपरासी से दसों गुना ज्यादा कमाते है.

क्या ऐसे बैसाखी वाले लोग जो एक्स्ट्रा पांच मार्क्स की वजह से नौकरी पा गए. मेरिट वाले बच्चों से ज्यादा उपयुक्त है. भविष्य क्या होगा ऐसे सरकारी महकमों का?. खासकर शिक्षा विभाग और स्वास्थय विभाग का जहां ये कम स्कोर वाले उम्मीदार सेवायेंगे देंगे. ऐसा करके हरियाणा सरकार हरियाणा का भविष्य तो बर्बाद कर ही रही है. साथ ही मेधावी बच्चों के सवैधानिक अधिकारों को भी छीन रही है . ये ध्क्के से असफल किये गए बच्चे आज और कल में अपना कोई भविष्य नहीं देख रहें. ऐसा न हो की ये आत्महत्या की राह पर चल पड़े.

सरकारी नौकरी के लगभग दसों टेस्ट क्लियर कर चुके और एक्स्ट्रा पांच मार्क्स न होने की वजह से फाइनल सिलेक्शन से दूर रहें. भिवानी के दीपेंदर, हिसार की प्रियंका, जींद के मनोज कहते है कि एक्स्ट्रा पांच मार्क्स का फायदा रिजर्वेशन होने के बावजूद देना सरकार का तुगलकी और वोट बैंक का फरमान है. इन्होने यहाँ की सरकार के मुखिया से पुछा है कि क्या ये सरकार ऐसा कानून भी बनाएगी जिसके तहत चुनाव में बराबर सीटें जीतकर आने वाली पार्टी में से उस पार्टी को एक्स्ट्रा पांच सीट दे दी जाये जिसकी अब तक को सरकार नहीं बनी और उसकी सरकार बन जाये. इन्होने ये बात हरियाणा के मुख्यमंत्री और देश के प्रधानमंत्री को खुले तौर पर कही है. अगर वो इस बात को स्वीकार कर लेंगे और तो हरियाणा के मेधावी विद्यार्थी भी एक्स्ट्रा पांच मार्क्स को सही मान लेंगे.

इन एक्स्ट्रा पांच मार्क्स से आज वो घर भी दुखी है जहां किसी बच्चे को सरकारी नौकरी न होने कि वजह से कहीं कोई छोटी नौकरी तो मिल गयी लेकिन अब उस के अच्छी नौकरी और घर में किसी अन्य सदस्य को नौकरी के सारे रस्ते बंद हो गए. हरियाणा के मेधावी बच्चों की मांग को देखते हुए यहाँ की सरकार और उच्च न्यायलय को स्वत् संज्ञान लेते हुए इस मामले को तुरंत संतुलित करना चाहिए. वरना हरियाणा के हर घर में बेरोजगारी की थाली और घण्टिया बजती रहेगी और यहाँ के युवा आंदोलन की राह पकड़ लेंगे.

—प्रियंका सौरभ
रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस,
कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार,

Language: Hindi
Tag: लेख
2 Likes · 274 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
अगर प्रेम में दर्द है तो
अगर प्रेम में दर्द है तो
Sonam Puneet Dubey
वही जो इश्क के अल्फाज़ ना समझ पाया
वही जो इश्क के अल्फाज़ ना समझ पाया
Shweta Soni
जिंदगी के उतार चढ़ाव में
जिंदगी के उतार चढ़ाव में
Manoj Mahato
ज़िंदगी बेजवाब रहने दो
ज़िंदगी बेजवाब रहने दो
Dr fauzia Naseem shad
I love you
I love you
Otteri Selvakumar
आप अभी बाहर जी रहे हैं, असली हीरा अंदर है ना की बाहर, बाहर त
आप अभी बाहर जी रहे हैं, असली हीरा अंदर है ना की बाहर, बाहर त
Ravikesh Jha
साँवलें रंग में सादगी समेटे,
साँवलें रंग में सादगी समेटे,
ओसमणी साहू 'ओश'
अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं
अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
😊पर्व विशेष😊
😊पर्व विशेष😊
*प्रणय*
कुछ दबी हुई ख्वाहिशें
कुछ दबी हुई ख्वाहिशें
हिमांशु Kulshrestha
3412⚘ *पूर्णिका* ⚘
3412⚘ *पूर्णिका* ⚘
Dr.Khedu Bharti
🥰🥰🥰
🥰🥰🥰
शेखर सिंह
खैरात बांटने वाला भी ख़ुद भिखारी बन जाता है,
खैरात बांटने वाला भी ख़ुद भिखारी बन जाता है,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
अदा बोलती है...
अदा बोलती है...
अश्क चिरैयाकोटी
हालातों का असर
हालातों का असर
Shyam Sundar Subramanian
बूंद बूंद में प्यास है, बूंद बूंद में आस।
बूंद बूंद में प्यास है, बूंद बूंद में आस।
Suryakant Dwivedi
वर्षभर की प्रतीक्षा उपरान्त, दीपावली जब आती है,
वर्षभर की प्रतीक्षा उपरान्त, दीपावली जब आती है,
Manisha Manjari
वक्त
वक्त
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
आकर्षण
आकर्षण
Ritu Asooja
खत और समंवय
खत और समंवय
Mahender Singh
लड़ता रहा जो अपने ही अंदर के ख़ौफ़ से
लड़ता रहा जो अपने ही अंदर के ख़ौफ़ से
अंसार एटवी
“अपना बना लो”
“अपना बना लो”
DrLakshman Jha Parimal
सफर वो जिसमें कोई हमसफ़र हो
सफर वो जिसमें कोई हमसफ़र हो
VINOD CHAUHAN
मरहटा छंद
मरहटा छंद
Subhash Singhai
"स्वस्फूर्त होकर"
Dr. Kishan tandon kranti
हमेशा कुछ ऐसा करते रहिए जिससे लोगों का ध्यान आपके प्रति आकषि
हमेशा कुछ ऐसा करते रहिए जिससे लोगों का ध्यान आपके प्रति आकषि
Raju Gajbhiye
2122  2122  2122  212
2122 2122 2122 212
Neelofar Khan
एक दिन हम भी चुप्पियों को ओढ़कर चले जाएँगे,
एक दिन हम भी चुप्पियों को ओढ़कर चले जाएँगे,
पूर्वार्थ
मेरा दिन भी आएगा !
मेरा दिन भी आएगा !
Dinesh Yadav (दिनेश यादव)
सफाई कामगारों के हक और अधिकारों की दास्तां को बयां करती हुई कविता 'आखिर कब तक'
सफाई कामगारों के हक और अधिकारों की दास्तां को बयां करती हुई कविता 'आखिर कब तक'
Dr. Narendra Valmiki
Loading...