सोशल मीडिया झूठ वैमनस्य हिंसा भड़काने का हथियार बन गया
सोशल मीडिया अपनी बात, दूसरों तक पहुंचाने में बड़ा मददगार है
लेकिन झूठ वैमनस्य हिंसा, भड़काने का भी हथियार है ?
सोचे समझे एजेंडे चलाने में, बहुत होशियार है होशियार लोग अपने मंसूबे, पूरे करते हैं
कभी-कभी आमजन, बेवकूफ बनते हैं
क्या इसका दुरुपयोग प्रतिबंधित नहीं होना चाहिए? क्या इसकी भी निरंकुशता पर अंकुश नहीं लगना चाहिए? पक्षपाती या एजेंडों पर, रोक नहीं होना चाहिए ?
सुरेश कुमार चतुर्वेदी