सोलह दूनी आठ।
प्यारे प्रियतम प्रेममय, पढ़ो प्रेम का पाठ।
मुझे समझ आता नहीं,सोलह दूनी आठ।।
कौन पढ़ाये आपको,सोलह दूनी आठ।
उम्र साठ की हो गई, रहा नहीं वो ठाठ।।
प्रेम पढाता है जिसे, उलटे-सीधे पाठ।
उसे समझ में आ गया, सोलह दूनी आठ।।
रूप वती मनमोहिनी,जाने जादू पाठ।
प्रेमी गण पढ़ने लगे, सोलह दूनी आठ।
जब से आई संगिनी, बना हुआ हूँ काठ।
लिखा हुआ है भाग्य में, सोलह दूनी आठ।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली