सोने पर सुहागा’ : एक गलत ‘मुहावरा’ / MUSAFIR BAITHA
गलत ‘मुहावरा’:
‘सोने पर सुहागा’, बहुप्रचलित लोकोक्ति है। यह किसी सकारात्मक प्राप्ति के संग-साथ मिली चीज़ के लिए प्रयोग में आता है। कहिये कि किसी स्वादिष्ट चीज़ के स्वाद में एडेड फ्लेवर होता है ‘सोने पर सुहागा’!
वैसे, गौर करें तो पाएंगे कि सोने को गलाने में सुहागा का प्रयोग होता है। सुहागा एक प्रकार का उत्प्रेरक है, कैटेलिस्ट है जो स्वर्ण को गलाने में मदद कर आभूषण आदि तैयार करने के काम आता है।
अतः सोना एवं सुहागे का जो आपसी सम्बन्ध है वह उपर्युक्त कहावत के चालू अर्थ को व्यंजित करने में सक्षम नहीं है। यदि सही अर्थ लेना हो तो लोकोक्ति से ‘सुहागा’ को अपदस्थ कर ‘सुगंध’ जोड़ना चाहिए, सुगंध चाहे सोने के कैरेक्टर में अटता हो न हो!
यानी, मुहावरे में चलाइये, मुहावरा चलाइये – “सोने में सुगंध”।