सोने की चिड़िया
एक रंग बिरंगी, आकर्षक,बहुत निराली थी चिड़िया,
तिनका तिनका तोड़ जोड़ कर,रहने आई थी चिड़िया!
बड़े वृक्ष की ऊंची शाख पर,
छोटा अपना घर बना कर,
स्नेह प्रेम का रंग लगा कर,
धर्म कर्म के पंख सजा कर,
खुद पर भी विश्वास बना कर, बसने आई थी चिड़िया!
रंग अनोखा, रूप सलोना,
अपना एक परिवार रचा कर,
दाना दाना चुन चुना कर,
उन्मुक्त भाव से,निर्भय होकर,गीत सुनती थी चिड़िया!
सावन की बौछारों को रिमझिम,
प्रणय रस से रच देती थी
हर मौसम को एक पर्व सा,
रोमांचित सा कर देती थी
कली कली और फूल फूल को, महका देती थी चिड़िया!
सूरज से लाली ले ले कर,
चंदा की शीतलता ले कर,
सरोवर से पावन जल कण ले कर,
अपना संसार चलती थी,
धरती और आकाश में कुछ फर्क नहीं करती थी चिड़िया!
पता नहीं,
कब पंख लगे,
कब फुर्र करके उड़ गयी चिड़िया,
कहते हैं के देश हमारा,
था कभी, सोने की चिड़िया,
नहीं चाहिए चांदी, सोना,
नहीं चाहिए,राज खजाना,
अब दिल करता है,
बस निर्भय होकर,उसी तरह,
उस ही डाल पर,किसी तरह,
फिर से लौट आए चिड़िया,
नयी चेतना,नई उमंग से,
वैसा ही आनन्दमय,
नया घर बनाय चिड़िया.
एक रंग बिरंगी, आकर्षक,बहुत निराली थी चिड़िया,
तिनका तिनका तोड़ जोड़ कर,रहने आई थी चिड़िया!!