सोच
शीर्षक -सोच…. मन की
************
हम सभी की सोच ही तो जीवन होती हैं।
सोच मन भावों की अपनी एक रहती हैं।
चाहत और यादों की सोच मन की होती हैं।
हमारे जीवन में बस एक सोच मन में रहतीं हैं।
सच और झूठ फरेब एक सोच ही तो होती हैं।
सोच एक मन की चंचलता भी हमें कहतीं हैं।
जिंदगी अपनी फिर भी सोच मन की रहती हैं।
आज और कल पल में सोच बदलतीं रहती हैं।
हां निःस्वार्थ सोच मन की हमारे साथ होती हैं।
हम सभी जीवन की राह पर सोच रखते हैं।
सोच एक मन में तेरे मेरे सपने भी कहतीं हैं।
सच तो यही जीवन का सच सोच होती हैं।
बस हम सबकी सोच मन की बात होती है।
आओ सोच मन की हम अपनी कहते हैं।
**********************
नीरज अग्रवाल चंदौसी उ.प्र