सोच
सोचती थी
क्या तुम्हारी सुगंध को
मेरी खुशबू रास आयेगी
क्या वो उसमें समा पायेगी
क्या अपने अस्तित्व को
तुममें खो पायेगी
हंस पड़े थे अधर
नाबालिक सोच पर
सोचती थी
क्या तुम्हारी सुगंध को
मेरी खुशबू रास आयेगी
क्या वो उसमें समा पायेगी
क्या अपने अस्तित्व को
तुममें खो पायेगी
हंस पड़े थे अधर
नाबालिक सोच पर