सोच
बाहर रोशनी की चकाचौंध
तालियों की गड़गड़ाहट , भीड़ का शोर
इनसे घिरे एक इंसान का मुस्कुराता हुआ चेहरा
नहीं जानते लोग उस इंसान के भीतर छाया अंधेरा
एक अजीब सी खामोशी , खालीपन और तन्हाई
कहीं नहीं मिलता है शायद कोई कांधा उसे
रखने को सर अपना , साझा करने को दर्द अपना
संभालने की कोशिश करता रहता है खुद को वह
देखकर कभी टूटते हुए सपने अपने
लेकिन टूट जाता है देखकर
मरते हुए सपनों को अपने
घिरा हुआ पाता है खुद को अवसाद और अंधेरे में
ले जाते हैं जो नकारात्मक सोच की ओर उसे
नहीं रह जाते उसके लिए फिर
खुद की ज़िंदगी और ज़िंदगी के मायने
निराशा और नकारात्मक सोच से प्रभावित
एक फैसला
बना देता है उसे वर्तमान से अतीत………………….