सोच रहा क्या मन में,
पिंजरा तो खाली करना है, रहता किस उलझन में,
प्राणी, सोच रहा क्या मन में l
विखर जांयगे फूल सभी जो, महक रहे उपवन में,
पंछी कहता उड़ो यहाँ से, क्यों रहता बन्धन में,
प्राणी, सोच रहा क्या मन में l
व्याकुल हो यह ही कहता है, क्या है मैले तन में,
अगले पल की खबर नहीं है, चला जायगा क्षण में,
प्राणी, सोच रहा क्या मन में l
कौन देख पाया है कल को, व्याप्त वही कण कण में,
आस दूसरे की क्या करना, खुद देखो दर्पण में,
प्राणी, सोच रहा क्या मन में l
जाने की बारी जब आई, लिप्सा क्यों है धन में,
अब भी समय सोच ले प्राणी, रहना नहीं चमन में,
प्राणी, सोच रहा क्या मन में l
समय बीत जायेगा तब फिर, पछताये जीवन में,
चार दिनों का समय मिला था, गँवा दिया अनबन में,
प्राणी, सोच रहा क्या मन में l