सोच रहा अधरों को तेरे….!
सोच रहा अधरों को तेरे, गीतों में मैं लिख डालूँ
प्रणय–कामना सहवासी, रातों का चुम्बन लिख डालूँ
अपने हाथों लिख डालूँ मैं
सुख–दुःख के इतिहास को
लिख डालूँ नैनों के पथ को
मंज़िल उस मधुमास को
सोच रहा कदमों में तेरे, बिछा जो दिल अपना डालूँ
प्रीत की राहों के पथ में मैं, प्रेम का फूल खिला डालूँ
माथे का मेहताब लिखूँ मैं
लिखूँ दमक तेरे गालों की
खिलता चेहरा कँवल लिखूँ मैं
लिखूँ चमक तेरे बालों की
सोच रहा जुल्फ़ों को तेरे, अपने साज़ों में ढ़ालूँ
उंगलियों को फिरा–फिराकर, मन को झंकृत कर डालूँ
लिख दूँ तुझको यौवन–प्रतिमा
धवल–धरित धारे है गरिमा
भाव लिखूँ जो तेरी भंगिमा
सलिला वेग सी रूप लालिमा
सोच रहा तेरे प्रवाह को, अपने अंदर भर डालूँ
मचली–सरिता की लहरों को, सागर सा जो मैं पा लूँ
–कुँवर सर्वेंद्र विक्रम सिंह✍🏻
★स्वरचित रचना
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