” सोच का फर्क “
बेटी को स्कूल के लिए तैयार करती कोमल सोच रही थी की घर में सबको बताये की ना बताये समझ नही पा रही थी , उसको पता था की बताते ही क्या होने वाला है डर लग रहा था लेकिन एक तरफ संजय पर जरूरत से ज्यादा भरोसा भी था की वो सब संभाल लेगा । पों पोंssss बस के हार्न से चौक उठी बेटी का हाथ पकड़ बैग उठा कर गेट की तरफ…भागी बाय – बाय मम्मा बाय बेटा बस के ओझल होने तक गेट पर ही खड़ी रही अंदर जाने का मन नही कर रहा था अंदर सब दुश्मन नजर आ रहे थे । लेकिन कब तक बाहर खड़ी रहती मन मार कर अंदर आ गई और रोज की दिनचर्या में उलझ गई , रात को बेटी को सुलाने के बाद उसने सोचा संजय को बता ही देती हूँ संजय मुझे तुम्हें कुछ बताना है हाँ बोलो क्या बात है ?
वो मैं फिर से माँ बनने वाली हूँ अरे ! ये तो अच्छी बात है मम्मी – पापा तो भईया – भाभी के पास ही गये हैं कल चल कर सबको एकसाथ ही खुशखबरी दे देते हैं ये ” खुशखबरी ” शब्द सुन कोमल के मन में बैठा डर कम हुआ फिर भी उसने पूछ ही लिया कहीं भाभी के साथ जो हुआ वो मेरे साथ भी तो नही होगा ? क्यों क्यों होगा तुम्हारे साथ वो भाभी की भी मर्जी थी किसी ने जबरदस्ती नही की थी उनके साथ ।
शाम को रीता भाभी और भईया के घर जाने के लिए निकले रास्ते भर कोमल को अपनी सास की कही बात याद आ रही थी ” तुम रीता की बराबरी मत करना वो अपने साथ आधी जायज़ाद लेकर आई है ( रीता भाभी बस दो ही बहनें थी ) , वहाँ पहुँच कर थोड़ी देर मिलना मिलाना चलता रहा फिर चाय नाश्ता चाय पीते – पीते सजय ने कोमल के प्रेगनेंसी की बात बता दी सब सुन कर खुश होते इससे पहले ही सास की आवाज ने चाबुक का काम किया बोलीं पहली बार जो हो गया सो हो गया इस बार बिना टेस्ट कराये बच्चा नही होगा वही हुआ जो कोमल ने सोचा था लेकिन वो भी सोच कर आई थी की वो चुप नही रहेगी झट बोली मम्मी मुझे लड़का – लड़की से कोई फर्क नही पड़ता है , लेकिन मुझे फर्क पड़ता है सास की आवाज तेज हो चुकी थी पापा ने कुछ नही बोला ये उनकी मौन सहमति थी । कोमल हार मानने वाली नही थी फिर बोली मम्मी आप तो कहती हैं की मैं भाभी की बराबरी ना करूँ क्योंकि वो अपने घर से आधी जायज़ाद लेकर आई हैं फिर यहाँ तो मेरे पास भाई होना खराब हो गया…मैं टेस्ट नही कराऊँगीं नही चाहिए मुझे दुसरा बच्चा अभी ज्यादा समय नही हुआ है चार महीने के बाद मुझे अपने ही बच्चे की हत्या से अपने हाथ नही रगंना है , मेरी एक ही बेटी ठीक है और वो आधी नही पूरी जायज़ाद लेकर जायेगी जिससे उसकी सास और भी ज्यादा प्यार करेगी । बहुत ज़बान चलने लगी है तुम्हारी अब संजय बोल उठे क्या बोल कर लाये थे यहाँ मम्मी – पापा के सामने सब टॉय – टॉय फिश फैसला सुना दिया गया लास्ट एंड फाइनल टेस्ट कराओ अगर लड़का हुआ तो ठीक नही तो अबार्शन कराना होगा , कोमल ने ये बात नही मानी वो तुरंत अबार्शन के लिए तैयार हो गई ये बोलते हुये की अब ये आखिरी बार है संजय की अपनी तरफ से उसके सपोर्ट में कुछ नही कहा । अस्पताल जाते हुए कोमल को सिर्फ़ संजय के अलावा और किसी से शिकायत नही थी जिसको अंतर्मन समझना था और साथ खड़े रहना था जब उसने ही नही समझी अंतर्मन की व्यथा तो किसी और से क्या उम्मीद करती वो । अस्पताल पहुँच कर डाक्टर से झूठ कह दिया की दूसरा बच्चा नही चाहिए मन बहुत बेचैन हो रहा था दिमाग काम नही कर रहा था ” सोच का फर्क ” देख चुकी थी की कैसे एक तरफ लड़का होना खराब था और दूसरी तरफ अच्छा , एनेस्थीसिया का असर हो चुका था होश में आने पर कुछ घंटों के बाद घर के लिए चल दी साथ था घायल मन और खुद के लिए कुछ ना कर पाने का दर्द , आँखे एनेस्थीसिया के असर से बंद हो रहीं थीं या आत्मग्लानी के बोझ से पीड़ा शरीर में हो रही थी या अंतर्मन में दोनों ही बात समझना मुश्किल था ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 10/09/2020 )