सोच और याद
सोच और यादे…
सुनो प्यारे,
बहुत बोर करती हू ना मै तुम्हे, बोर तो करुंगी ना मै पागल जो हू!मै एक पागल जो वास्तव मे कम और कल्पना कि विश्व मे जादा जिती हू! जिती हू या सिर्फ सोचती हू ये नहीं पता! तुमने एक बार कहा था कि मेरे पागलपण कि वजह मेरा जादा सोचना है!! हा बहुत जादा सोचती हू और सबसे जादा तुम्हे ही सोचती हू! अब तुम ही बताओ सोचने कि कोई हद हो सकती है क्या? कितना भी सोचा जा सकता है और कुछ भी सोचा जा सकता है ना!! लोग केहते है अच्छा सोचो तो फिर अच्छा होगा परंतु अगर ये सोचना अगर एक सतत प्रक्रिया हो जाये तो इन्सान अच्छा बुरा उलटा सिधा और सभी हदो से पार सोच लेता है! लेकिन मै तो बस तुम्हे सोचती रेहती हू तुम्हे सोचने कि सारी हदे मैने कब कि पार कर दि है! तुम्हे सोचते सोचते मै तुम्हारा खिलना सोचती हू, तुम्हारा नाराज होणा सोचती हू! तुमसे किये जा सकणे वाले झगडो के बारे मै भी सोच लेती हू! पास ना होकर भी तुम मुझे देनेवाले साथ के बारे मै सोच लेती हू! बिना तुम्हारी इजाजत लिये तुम्हारी बाहो मे होना सोच लेती हू, तुम्हे मेरी बाहोमे गेहरी निंद लेते हुये सोच लेती हू!
कभी कभी सोचते सोचते हमारा बुढापा भी सोच लेती हू!
और भयावह ये है कि एक दुसरे कि बाहोमे हमे आखरी साँस लेते हुये भी सोच लेती हू!तुम्हारे माथे पर आंखरी चुंबन से तुम्हे विदा करते हुये भी सोच लेती हू ! सोचते सोचते खुद ही खुश होना निराश होना रो पडना जारी रहता है!
कभी कभी सोचती ये मेरे सारे जजबात तुम्हे खत मे लिखकर भेजू! लेकिन खत मे मै सिर्फ खास बाते लीखती हू! क्यूकी तुम भी तो खास ही हो मेरे लिये! सोचते सोचते भूल जाती हू क्या लिखना था यहा तक कि ये भी भूल जाती हू क्या सोचना था! फिर गॅस पर रखी सब्जी गल जाती है रोटी जल जाती है और तुम याद आते हो! और फिर तुम्हे जादा याद ना करणे का सोचती हू!
और तुम्हे याद नहीं करना है ये सोचते सोचते फिर एक बार तुम याद आहे जाते हो 💙