सोचो कैसे सहता हूँ?
सोचो कैसे सहता हूँ?
गला सत्य का दबते देख,
अपनों को घात लगाते देख।
मानव जब मानव विष पी ले,
पर मूक बने सब नैना देख।
सोचो ……………………..।
जहाँ यारी में गद्दारी हो,
पर बातें प्यारी प्यारी हों।
तन तो होते है पास पास,
पर दूरी दिल की भारी हो।
सोचो…………………….।
नोटों की हो बरसात कहीं,
कोई पाता सब्जी भात नहीं।
जहां भूख ही लाचारी हो,
पेट मानवता पर भारी हो।
सोचो …………………….।
जगह जगह सेवा की बात,
बंदरबाँट होती दिन रात।
आधी रह जाती कागज में,
आधे में भी हो बकवास।
सोचो……………………।
विश्वास भरे उनके वादे,
रात गए मिलते सादे।
कुढ़न हिया में कौंध देती,
ऐसे प्यार के देख इरादे।
सोचो…………………..।
बने महिला जग में न्यारी,
सोच सुविधाएँ बड़ी सारी।
हर साल जले रावण फिर भी,
मर्यादा जाती तारी तारी।
सोचो ………………….।
नैतिकता का पतन हो रहा,
मानव मद में ही खो रहा ।
नैनों से निंदिया चुराते देख,
मन मंदिर का प्रभु रो रहा ।
सोचो …………………….।
सोचो……………………..।
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