सोचें या कहें ।
तुम्हें सोचे या गजलें कहे कोई
मिसरा , विसरा शेर कहे कोई ।
दिल आजकल तन्हा रहता है
इसमें आकर भी तो रहे कोई ।
दर्द बेहिसाब देते हो यार तुम
इतना भी दर्द कैसे सहे कोई ।
लहरें तेज है समंदर के अभी
इसमें भला कैसे बहे कोई ।
– हसीब अनवर
तुम्हें सोचे या गजलें कहे कोई
मिसरा , विसरा शेर कहे कोई ।
दिल आजकल तन्हा रहता है
इसमें आकर भी तो रहे कोई ।
दर्द बेहिसाब देते हो यार तुम
इतना भी दर्द कैसे सहे कोई ।
लहरें तेज है समंदर के अभी
इसमें भला कैसे बहे कोई ।
– हसीब अनवर