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1 Aug 2024 · 1 min read

सोचने लगता हूँ अक़्सर,

सोचने लगता हूँ अक़्सर,
क्या वफ़ादारी का दाम?
जानवर पाबंदियों में,
आदमी है बे-लगाम।।

😢प्रणय प्रभात😢

1 Like · 46 Views
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