सोचता हूँँ
सोचता हूँँ , मुसव्विर हो ,ख्व़ाबों- ख़यालों में बसी वो तस्वीर बना रंगों से भर दूँ ,
या उसकी तारीफ़ में इज़हारे जज़्बात शायर बन पेश करूँ ,
या उस पर लिखे गीतों –गज़लों की दिलकश धुन मौसीक़ार बन पेश करूँ ,
या उसे अपने ख़्वाबों की ता’बीर में अदाकार बन जीऊँ ,
या उसे ख़ुदा मान उसकी इब़ादत में बन फ़कीर ये ज़िंदगी गुज़ार दूँ ,