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5 Dec 2024 · 1 min read

सोचता हूँ

सोचता हूँ
क्या खोया क्या पाया
इस सफ़र ए जिंदगी में
वक़्त बदलता रहा
हालात बदलते रहे
लोग बदलते रहे, चेहरे बदलते रहे
फ़ितरत से मजबूर रहे हम
लोग खेलते रहे जज्बातों से
हम खिलौना बने रहे
तजुर्बे हुए तमाम
हम इबारतें पुरानी लिखते रहे
बदलता रहा नज़रिया ज़माने का
हम ही जिद्दी रहे
अपनी जगह खड़े रहे….!!!!

हिमांशु Kulshrestha

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