सोचता हूँ..
सोचता हूँ…
कभी कभी कुछ यूँ कि…
मसाले वही होते हैं,
नमक मिर्च भी वही,
अनुपात भी वही,
साग भी वही,
तरीका भी वही,
बर्तन, तेल ,पानी वही,
लौ और आंच,
सब कुछ वही,
फिर क्यूँ बदल जाता है स्वाद?
खाने का…
हर बार , बार बार???
क्यूँ हर बार स्वाद,
वैसा नहीं रहता?
जैसा कल था?
जैसा पिछला था?
बहुत सोचा, सोचता रहा,
फिर मिले वो उत्प्रेरक..
जो समान क्रिया होने पर भी,
नतीजे बदल डालते थे…
एक है ‘समय ‘और,
दूजी ‘भावना ‘!!!
मुश्किल होता है,
सदा इनको साधना,
ये दो चीजे शायद,
जब कभी
एक अनुपात मे नहीं होती…
बस, तब ही बदल जाता है!!!
स्वाद…सब्जी का..
स्वाद…संबंधों का…
या तो मधुर या तीक्ष्ण,
या फिर बेस्वाद सा नीरस…
समय सतत् परिवर्तनीय है…
इसका अनुपात क्या होगा??
ये तो समय ही तय करता है…
भावना भी सापेक्ष है,
छोटी सी बात में..बदल जाती है,
और बस
इनके बदलते ही..
बदल जाता है….
स्वाद जीवन का…स्वाद खाने का,
स्वाद अपनो का ,स्वाद गैरों का..
कभी मीठा, कभी कषाय या फिर बेस्वाद??????
©विवेक’वारिद’ *