सोचता हूँ जिसे अक्सर ख्यालों मे
***सोचता हूँ जिसे अक्सर ख्यालों में***
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सोचता हूँ मैं जिसे अक्सर मेरे ख्यालों में
अन्जान हूँ मैं अभी तक उसके ख्यालों में
लाख कोशिशें करीं बयां हाल ए दिल में
अब तक नाकाम रहा ना फंसा जालों में
छाई बदली प्रेम की मेरे दिल ए जिगर में
न जाने कब बरसेगी मेरे खाली प्यालों में
नींद नहीं आती कभी फूलों की सेज पर
रातों को सताएगी स्वपनिल ख्यालों में
पायल सी खनकती रहती है हंसी हरदम
गूँजती शँख ध्वनि सी मेरे कर्ण पटलों में
राहों में से खोजती रहे धूलि तेरे पाँव की
पग पग खड़ा रहूँ तेरे मन के ख्यालों में
नेस्तनाबूद कर रही तेरी मधुर मुस्कराहटें
नजरे नशीले बाँधती हैं तेरे प्रेम प्यालों मे
अंजुमन में आँखे ढूँढती जान ए मन को
बुझी महफिल लगे बिना तेरे ख्यालों में
मनसीरत कब बदलेंगे स्वप्न हकीकत में
उपासक उपासना करे नैनों के प्यालों में
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)