सोंच.
खोखला है ये समाज, खोखले है लोग
खोखली है मानवता, खोखली है सोंच,कहने को तो वादो के पुल, बधते जाते है रातो दिन…
निभाने की किसको परवाह, सायद हमसफर मिल जाए नया कोई अगले दिन….
समन्दर के किनारे, हर मैले पॉव धोते है.रेत पर बने महल भी कयामत के खुबशूुरत होते है…
वो समन्दर भी क्या जो अपने किनारो से मिलने को तरस जाए..
वो महल ही क्या जो हवा के एक झोके से मिट्टी बन जाए……. $