सोंच
सबकी गई है सोंच सिमट सरायन जैसी
इसमें अब घाघरा का फैलाव कैसे आयेगा
हांथ के विषाणु तो मरेंगे सैनीटाइजर से
आत्मा के विषाणु कौन घोल मार पायेगा
सोंचो और सोंच पर दबाव डालो अपनी अब
सोंच बदलोगे तभी समाज सुधर पायेगा
कोई अकेला नहीं है तोड़ सकता पत्थर एक
सब मिलकर तोड़ोगे पहाड़ टूट जायेगा
अशोक मिश्र