सैलाबी कर लेता नैया पार
***सैलाबी कर लेता नैया पार***
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जल जीवन का है अमूल्य उपहार
वन, वन्य, धान्य,प्राणी का आधार
जब धारता है कभी रूप विनाशक
सैलाब बन के देता धन जन संहार
कभी हो जाता प्रकृति से विलुप्त
सूखाग्रस्त कर देता है प्यासा मार
हौसलोंं से ही होती है सदैव जीत
जब फंस जाए बीच लहर मंझदार
बेशक सिर अन्दर हाथ हों बाहर
सैलाबी कर लेता है नैया उस पार
संघर्षों से लड़ के मिलती मंजिल
हिम्मत जो करता खुदा मददगार
करते रहिए कुदरत का सम्मान
मत बनिए कुछ ज्यादा समझदार
जल धारा होती है जीवनदायिनी
उग्र हो तो ठप्प कर देती व्यापार
पराजित होने का यदि न हो भय
अपराजित रहोगे कर दरकिनार
विजय पराजय में तनिक अन्तर
मन से ही निश्चित होती जीत हार
दृढ संकल्पित हो के बढ़ते रहिए
ज़ज्बों से होते सदा ज़ज्बात पार
चलने से ही तय होती हैं रहगुजर
घर बैठे मिलते कभी नहीं उपहार
प्रयास से ही मिलती हैं नूतन राहें
खुल जाते है जीने के बंद दरबार
सुखविंद्र सागर लहरों रहे लड़ता
तब कहीं हो पाता है संकट उद्धार
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)