‘सैनिटाइजर’
सैनिटाइजर
“माँ – माँ ! मुझे सैनिटाइजर चाहिए।” निम्मो से उसका 10 साल का बेटा जिद्द कर रहा था।
“अरे सुखिया !ये क्या होता है रे”?निम्मो ने पूछा।
माँ कल रास्ते में बहुत लोग बतिया रहे थे कि कोई नई बीमारी जन्मी है। हाथों में सेनीटाइजर लगालो तो खतरा नहीं होता। दुकान में मिल रहा है।
मुनिया कह रही थी कि हम कूड़ा बीनते हैं तो हमें भी लगाना चाहिए। मुनिया भी लेगी । पैसे दो मैं भी लेकर आता हूँ। फिर चलेंगे कूड़ा बीनने ।सुखिया ने माँ से कहा।
तू घर में बैठ , बारिश पड़ रही है।मैं कूड़ा बीनकर आती हूँ।
माँ तभी तो कह रहा हूँ ,तुम सैनिटाइजर लेकर जाना।
शहर में फैली है बहुत बड़ी बीमारी है ,ऐसा कह रहे थे मुनिया के बाबा।
सुखिया बड़ी मासूमियत से बोला।
“बिटवा हम गरीबों की बड़ी बीमारी तो भूख है ,मुझे कुछ नहीं लगाना। दो रोटी आटे का जुगाड़ हो जाए बहुत है । पैसे नहीं हैं मेरे पास ।”निम्मो ने उदासी भरे लहजे में कहा।
माँ!ला दो न ! मैं भी जाऊंगा तुम्हारे साथ । दोनों जाएंगे तो ज्यादा कूड़ा बीनेगे मेरे पैसे तुम रख लेना सेनीटाइजर के। सुखिया ने जिद पकड़ ली ।
निम्मो भीतर गई और मुट्ठीभर राख की पोटली सुखिया की हथेली पर थमाकर बोली ,”ले मुए मानेगा नहीं।”
पर ये तो राख है माँ!सुखिया ने आश्चर्य से कहा।
यह गरीबों का सैनीटाइजर है।
चलना है तो चल , नहीं तो घर में बैठ । पगला कहींका ,निम्मो खीजते हुए बोली।
सुखिया कभी माँ को देखता तो कभी राख को….।
सुखिया दौड़ता हुआ बाहर निकला और पडो़स की लड़की मुनिया के घर उसे बुलाने पहुँच गया।
उसने जोर से आवाज लगाई,”मुनिया ओ मुनिया! चलो चलते हैं कूड़ा बीनने देखो मैं सेनीटाइजर भी लाया हूँ । काकी ओ काकी!चलो माँ आ रही है।”
मुनिया की माँ ने कहा, बिटवा अब कोई कूड़ा बीनने नहीं जाएगा, सरकार ने मना किया है।सब को घर में ही रहना है वरना पुलिस जेल में बंद कर देगी।”
सुखिया उदास होकर माँ को देख रहा था और मन ही मन सोच रहा था ,अब माँ आटा कहाँ से लाएगी।उसके हाथ से राख की पोटली छूट गई और वह माँ से लिपट गया।