सैनिक
मुक्तक
गद्दारियों के पद तले वे भेंट ही होते रहे।
निज कामना के मृत शवों को अंस पर ढोते रहे।
बस त्याग बन कर रह गयी है सैनिकों की जिंदगी।
सुख से सुलाने वे हमें चिर नींद में सोते रहे।
अंकित शर्मा ‘इषुप्रिय’
रामपुर कलाँ,सबलगढ(म.प्र.)