बलिदान
धुंधली सी आंखें मुरझाया सा चेहरा
फटे कपड़े, टूटा चश्मा बदन इकहारा
मुँह के अन्दर घुटी हुई सी सिसकी
शायद दिल में कोई ज़ख्म है गहरा
बेसब्र है दिखाने को मगर जाने क्यूँ
हर आँसू पुतली के बांध पर है ठहरा
बेबस है वो ,लूट कर ले गया कोई
एक सपना जो उसने देखा था सुनहरा
बस यही आखिरी तमन्ना थी दिल में
की जल्द बंधे उसके भी सर पे सेहरा
बड़ी हिम्मत से भेजा था उसने अपना
बुढ़ापे का सहारा देने सीमा पर पहरा