‘सैनिक शासन आज लगा दो…’ : छंद लावनी
छंद लावनी
(मात्राएँ १६,१४)
आतंकी बुरहान और इन सबमें रिश्तेदारी है,
इस्लामिक कश्मीर बनाना, मकसद है तैयारी है.
लहू चूसकर जिस धरती का ये सब जीते मरते हैं,
उससे ही गद्दारी करते जोंक सरीखे लगते हैं.
पाकिस्तानी झंडा रखते, घाटी में लहराते हैं.
मां का आँचल जान तिरंगा, जो गद्दार जलाते हैं.
आई० एस० एजेंन्ट बने हैं, वो ही सारी घाटी में.
साफ़ किये कश्मीरी पंडित, मिला दिए हैं माटी में.
गद्दारी नस-नस में बहती, खानदान पहचाना है
कबायली हमला जब देखा, तब से सबने जाना है
ले हथियार मिले जा पुरखे, जिससे लड़ने भेजा था.
चूर चूर कर डाला उसको जो विश्वास सहेजा था.
अपनी रेजीमेट कहाँ है नेताजी ने पंक्ति पढी.
रेजीमेट बना तो देते, गद्दारी की भेंट चढ़ी.
पहले चार दमादों को बेटी के बदले छुड़वाया.
बाद पाँचवां बना मसर्रत, रिहा उसे भी करवाया.
उन सबको भी रिहा करेगें, बंद अभी जो जेलों में.
शामिल जो पत्थरबाजी में, कत्लगाह के मेलों में.
पोषक हैं अलगाववाद के दिल ही पाकिस्तानी है.
पाकिस्तान मिनी कहते हैं, इसमें क्या हैरानी है.
सेना और आरएसएस को जी भर के गरियाते हैं.
बाढ़ और भूकंप आपदा में बिल में घुस जाते हैं.
नाकारा सत्ता कश्मीरी, भलमनसी की शोषक है.
लहराए जो चाँद सितारा उसकी ही वह पोषक है.
चाहे कितना दूध पिला दो, ये समझेगें पानी है
टेढ़ी चाल चलेगें मिलकर, इसमें क्या हैरानी है.
धोखेबाजी पत्थरबाजी, आदत है परिपाटी है.
इनसे ही धरती की जन्नत, अब आतंकी घाटी है.
कश्मीरी पंडित जो बेघर उन्हें नहीं रोने देगें.
मुल्क बाँटने के कुचक्र को, सफल नहीं होने देगें.
संविधान आड़े जो आये, संशोधित अब उसे करो .
जागो! आज समय है आया, वोटनीति से नहीं डरो.
खून वतन का खौल रहा है, अब काली करतूतों पर.
सैनिक शासन आज लगा दो, इन बेशर्म कपूतों पर.
समझौते की नीति छोड़कर, मोदी जी इन्साफ करों.
या तो इनकी गर्दन बाँधो, या फिर मकसद साफ़ करो..
— इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव ‘अम्बर’