सैनिक रज
क्या नही चाहिए पैसे उनको, क्या उनक़े पेट थे भरे हुऐ।
फिर क्यो भागे कमाण्डो वो, थे जान से क्या वो डरे हुऐ।।
नही था जज्बा सेवा का या, वो रूपये कमाना ठान गये।
मुठभेड़ में नक्सलियों से जा, सकती है जाँ क्या जान गये।।
अब एक सवाल उठता है मन में, क्या पूछूँ उन बचालों से।
जो कहते नही है कोई सेवा, सीना ठोंक के उन्ही दलालो से।।
क्या इसके पहले ये नही समझ थी, बाकी के रणबीरों में।
की बिध सकते है उनके सीने, कई जख्म भी होंगे शरीरो में।।
क्या उनको था ये नही पता, की गर्दन कैसे कटता है।
जीता जागता इंसा पल में, कैसे मिट्टी में मिलता है।।
अरे मरे संवेदना वालो जाओ, तुमको ये अधिकार नही।
जिसको इन सैनिक की रज, अपने सर स्वीकार नही।।
बन्द करो अब बन्द करो, बस बन्द करो ये क्लेश अभी।
ले लो माफ़ी कलुषित शब्दो से, जो उपजे अवशेष सभी ।।
“चिद्रूप” एकदिन ये सब जानेंगे, मौत का डर होता है क्या।
घर के चिराग से जलेगा मंजर, तो देख असर होता है क्या।।
©® पांडेय चिदानंद “चिद्रूप”
(सर्वाधिकार सुरक्षित १०/०२/२०१८ )