सेहरा में ना आबे जमजम होता हैं।
दर्द ए दिल का ना कोई मरहम होता है।
गुजरते वक्त के साथ ही यह कम होता है।।1।।
तेरे शहर की यादें मैं साथ ले जा रहा हूं।
सफरे तन्हाई में ना कोई हमदम होता है।।2।।
अगर याद आ गई अपनो की परदेश में।
फिरतो हर चेहरा अश्कों से नम होता है।।3।।
मोहब्बत और नफरत दिल ही करता है।
ये कभी शोला तो कभी शबनम होता है।।4।।
ख्वाबों में जीना बस इक वहम होता है।
दर्दे इश्क में कहां कोई जख्म दिखता है।।5।।
यूं तो इस्माइल का बड़ा ऊंचा है मर्तबा।
वरना सेहरा में ना आबे जमजम होता हैं।।6।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ