सेहरा-दारिया
उसको समझना इतना आसान नहीं है।
काफिरों का कलाम होता कुरान नहीं है।।
नामुमकिन है उनका यूं साथ रह पाना।
आफताब जैसा होता महताब नहीं है।।
तारीफे खुदा को अल्फाज़ कम पड़ते है।
खुदा किसी का होता मोहताज नहीं है।।
मिल लो तुम किसी दूसरे हकीम से।
मेरे पास ईश्क का होता इलाज नहीं है।।
यूं अनपढ़ों के मुंह मत लगा करो तुम।
जरा भी उनमें होता आदाब नहीं है।।
भटक रहा है सेहरा में पानी के लिऐ।
उसको ना पता सेहरा,दरिया होता पास नही है।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ