सेवा
लघुकथा – “सेवा”
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“माँ , जल्दी से पानी ले आओ, और फिर मस्त सी चाय पिला दो।” मोहन ने घर में घुसते हुए माँ को आवाज लगाई ।
“आज तो गुरु जी के आश्रम में सेवा करते हुये थक गये यार, बहुत सेवा की आज ।” पत्नी स्वाति से कहते हुये मोहन सोफे पर ही पसर गया ।
“बेटा मुझे डाक्टर के पास ले चलना, साँस बहुत फूल रही है कुछ दिनों से ।” सावित्री देवी ने मोहन और स्वाति के सामने चाय रखते हुए कहा ।
“माँ तुम खुद ही चली जाना, हम दोनों आज सेवा में गये थे थक गये हैं।”
“माँ जी, आज शाम का खाना भी आपको ही बनाना पड़ेगा मै भी सेवा में बहुत थक गयी हूँ ।” स्वाति ने भी अपनी बात रखते हुए कहा ।
“हे भगवान इनकी सेवा स्वीकार कर लेेेेना । ” साााावित्री देवी नेे इतना ही कहा और अपने कमरे की ओर चल दी ।
“सन्दीप कुमार ”
27/08/2017