सेवा का कार्य (लघुकथा)
सेवा का कार्य (लघु कथा)
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हरिया की पान की दुकान वैसे तो पान बेचने की दुकान थी। लोग आते थे, पान खाते थे ।लेकिन वास्तव में यह सामाजिक गतिविधियों की और लोगों का जमावड़ा इकट्ठा होने का केंद्र था।
इस समय भी यही हो रहा था। शहर के चार लोग हरिया की दुकान पर खड़े थे और कह रहे थे कि परसों जो जुलूस निकलेगा, उसके स्वागत के लिए शरबत का इंतजाम हरिया की दुकान पर हो जाए। हरिया ने इस्टीमेट बता दिया कि इतनी शीशी शरबत की ,इतना बर्फ, इतने गोल्टे और इतने प्लास्टिक के गिलास। आयोजकों ने धनराशि दी और चले गए ।
दो दिन बाद जुलूस निकला । हरिया की दुकान पर आयोजकों द्वारा बैनर लगाकर शरबत पिलाया गया ।जुलूस जब चला गया तो चारों तरफ प्लास्टिक के गिलासों का ढेर या कहिए कि प्लास्टिक के गिलासों की एक प्रकार से चादर सड़क पर बिछ गई थी।
मैं भी वहीं पर था । मैं हरिया की दुकान पर गया, पूछा “कुछ सेवा कार्य कराना है, कर लेते हो ?”
हरिया में सोचा, यह नया ग्राहक फंसा। मैंने कहा “जुलूस …”बस हरिया ने इसके आगे कुछ बोलने ही नहीं दिया ।..”ऐसा ही जुलूस को शरबत पिलाने का काम कर दूंगा”
मैंने कहा” नहीं..। शरबत पिलाने का काम नहीं करना है बल्कि शरबत पिलाने के बाद प्लास्टिक के गिलास पूरी सड़क पर जो फैल गए हैं, उस कचरे को बटोरने का बताओ कितना खर्चा आएगा ?”
हरिया चौंककर पीछे हट गया,.बुदबुदाया “यह भी कोई सेवा का कार्य होता है….?
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लेखक :रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश //मोबाइल 99976 15451