*सेवानिवृत्ति*
“सेवानिवृत्ति”
गुलामी की जंजीरों से हुए आजाद, आज;
छुपाएं होंगे आप, दिल में कितने ही राज।
अब कल से हर पल है, आपका ही अपना,
अब पूरे होंगे, आपके जीवन का हर सपना।
मन हो रहा होगा आज आपका, बहुत ही हल्का,
इंतजार होगी सदा, मुक्ति के इस सुनहरे पल का।
अब मिलेंगे आपको अपने, यार-दोस्त हजार;
सबके दिलों में होगा, आपके लिए सदा प्यार।
आप मत ही घबराना, विदाई के इस झूठी रस्मों से,
अपने को कभी मत देखना, सेवानिवृति के चश्मों से।
अब तो होगें आपके नई जिंदगी की शुरुआत,
सब अपने होंगे आपके, सदा ही आपके साथ।
अपने दिनचर्या को आप, यों ही सदा चलने देना;
निज दिल और मन को, अब जरा मचलने देना।
कोई नही अब आप पर,अपना रोब दिखाएंगे;
आप अपनी जिंदगी खुलकर सदा जी पाएंगे।
मगर अपने दशकों पुराने साथी को, यों ही न भूल जाना,
याद रखना उन्हें भी, और कभी इधर भी तशरीफ लाना।।
…………………और कभी इधर भी तशरीफ लाना…….✍️
……….✍️ पंकज “कर्ण”
………………कटिहार।।