सेमल
सेमल कल तक था खड़ा,यूँ ही नंग धरंग।
प्रिय बसंत का आगमन,निखर उठा हर अंग।।
हाड़-मांस को फोड़ कर,फूट पड़ा हर अंग।
रक्त पुष्प बन कर खिला, दहक रहा है संग।।
डाली-डाली खिल उठा,स्वागत में ऋतु राज।
कुंदन कुसुमों से सजा, महा वृक्ष है आज।।
लगा साँवली देह पर, लाल रंग का फूल।
पहन लिये कुर्ता हरा,वृक्ष रहा है झूल।।
चोंच मारती पुष्प पर,करती विहग किलोल।
देख-देख हर्षित भ्रमर, रहे पुष्प पर डोल।।
बड़ा रंगीला लग रहा,सेमल का यह रूप।
छेड़ रही छूकर हवा,चूम रही मुख धूप।।
सेमल काला था पड़ा,श्यामल हुआ शरीर ।
ठिठुर रहा था ठंड से,शिशिर चलाया तीर।।
आज सलोना लग रहा,सेमल का हर अंग।
हरे लाल के बीच में,शोभे काला रंग।।
लाल पुष्प में क्रोध है,उष्मा से भरपूर।
फल कोमल रूई बना,हुआ क्रोध सब दूर ।।
बिखर दिए फल फूटकर,श्वेत सुकोमल फाह।
उड़-उड़ कर कहने लगी,हुई पूर्ण सब चाह।।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली