सेकेट्री साहब
कल मैं पहुंचा था
पंचायत समिति
किसी जरुरी काम से
सहर्ष, बड़े आराम से।
पहुँच कर पंचायत समिति
सेकेट्री को फ़ोन किया –
“सर, लेना है मुझे चेक आपसे ”
उसने मुझे अपने घर बुलाया
मैं पहुँच गया घर बड़ी शान से
आंटी जी!
सेकेट्री साहब हैं क्या घर?
बेटा वो तो आये ही नहीं घर
कल शाम से।
मैंने फिर फ़ोन किया –
“साहब कहाँ हो? सच बताना ईमान से”
मैं पंचायत समिति आ गया बेटा
तुम वहीँ पहुँचो
कुछ वाहन से ।
तुरंत,
मैं पंचायत समिति पहुँचा
वहाँ भी सेकेट्री साहब का
रूम मिला खाली
अब तो बजने लगी थी
मेरे क्रोधित मस्तिष्क की ताली।
फिर मैंने फ़ोन किया
पता चला-
साहब, तहसील पहुंच गए हैं
मैं वहाँ भी पहुंचा
मुझे वहाँ भी वे नहीं मिले
मैंने उन्हें फिर फ़ोन किया
कहा-
सर, ये तो है आपकी मक्कारी
सच बताओ साहब कहाँ हो।
बेटा मैं घर हूँ
ऐसी फिर मारी
उन्होंने बात जाली
पुनः साहब का घर मिला खाली
मैं व्यथित हूँ
कौन करेगा
इन दलालों की रखवाली।
अंततः, मुझे एहसास हो गया
कुछ मतलब नहीं इनको
हम जैसे इंसान से
इनकी ही वजह से देश
नहीं हुआ प्रज्ज्वलित
विकास की मशान से।
नरेश मौर्य