सेकेंड बेडरूम
5 दिसम्बर 2021
3 बी एच के अपार्टमेंट
323 सुशीला सदन थर्ड फ्लोर
ज्योतिष राय रोड
कोलकाता
ये मेरे बेटे का निवास है जो यहां बैंक हेड आफिस मे चीफ मैनेजर के पद पर कार्यरत है। उसके साथ पत्नी एवं दो बच्चे रहते है, आजकल यहीं मेरा प्रवास है। ये चौथा आगमन है, इसके पहले भी तीन बार आ चुका हूं। तब मेरे साथ मेरी पत्नी, बेटे की मां भी हुआ करती थी। एपार्टमेन्ट मे बेडरूम तो तीन है लेकिन टायलेट दो ही है। एक मास्टर बेडरूम से अटैच है दूसरा कामन। इस कामन टायलेट के बगल वाला बेडरूम जो स्पेसियस, दो अलग दिशाओं मे खिड़कियां साफ हवा के आवागमन के लिए, में डबल बेड डाल कल कर हम दोनो के रहने का इंतजाम, हो जाया करता था। इस बेडरूम का नामकरण मैने ‘सेकेन्ड बेडरूम’ कर रक्खा था। जितने दिन भी हम रुकते बेटा और बहू दोनो हमारा ख्याल रखते, किसी तरह की असुविधा न होने पाए ये भी ध्यान रखते। चलते समय बेटा भावुक हो के कहता कुछ दिन और रुक जाते लेकिन गृहनगर मे भी निजी आवास और कारोबार होने के कारण वहां भी देखना होता है सो मजबूरी जाहिर करते और फिर आयेंगे कह कर वापस चले आते।
इसी वर्ष चार माह पहले पत्नी की तबियत खराब हुई। गृहनगर मे ही मेरी दो विवाहित बेटियां भी रहती है जो प्रायः आती-जाती रहती हैं और हाल-चाल लेती रहती है। पहले तो इन्ही दोनो ने दवा इलाज करवाया लेकिन जब मर्ज बढा तो बेटा भी पत्नी बच्चों सहित अपनी मां की देखभाल और इलाज के लिए आ गया। बेटे और बेटियों ने मिल कर मां के इलाज मे कोई कसर नही छोडी लेकिन विधाता की मर्जी कुछ और ही थी। इलाज प्रारम्भ होने के दो महीने से कम समय मे ही उनका निधन हो गया और तेरहवीं भी हो गई। मै अकेला होकर अपनी सुध-बुध खोये हुए अनमना सा हो गया। कुछ दिनो तक बडी बेटी जो शहर के बाहर रहती है ने मेरे साथ रह कर मेरा पूरा ख्याल रक्खा, कभी मुझे अकेला नही छोडा, कभी ये महसूस नही होने दिया कि उसकी मां अब इस दुनियां मे नही हैं। आखिर वो भी कब तक मेरे साथ रहती, उसका अपना भी घर परिवार और बच्चे है, उनकी भी जिम्मेदारी थी सो वो चली गई। इस दौरान बहू और बच्चे साथ ही रहे, बेटा जाब पर अपने शहर मे अकेला रहा। ऐसा कब तक चलता ? इसलिए कुछ दिन बडी बेटी के घर रह कर, बेटे और बहू के साथ यहां आ गया।
यहां पहुंचते ही आंखो के सामने पिछले तीन प्रवासों का दृष्य जिसमे पत्नी भी साथ थीं, चलचित्र की भांति आंखो के सामने तैरने लगे। उस कमरे ने जिस मे हम साथ रहे थे मुझे झकझोर दिया, अकेले कैसे रह पाऊंगा ? उनकी गैरमौजूदगी मुझे हर समय कचोटेगी। वो मुझे कभी अकेला नही छोड़ती थी, साथ ऐसा जैसे दिया और बाती, एक के न रहने पर दूसरे का अस्तित्व ही क्या ? अब जैसे भी हो जीवन निर्वहन तो करना ही है उनकी यादों के साथ ही सही।
इस बार बेटे ने मेरे निवास को लेकर कुछ परिवर्तन कर दिये। मेरा बेड लिविंग एरिया मे डाल दिया। शायद सोंचा होगा कि कमरे मे मम्मी की यादों से परेशान हो जायेगें यहां बच्चो के साथ मन बहला रहेगा या ये भी हो सकता है कि भाई बहनों ने फोन पर वार्ता करके यही इंतजाम सही समझा हो। पहली रात सो न सका, सुबह बेटे ने पूंछा तो कह दिया – ‘गर्मी लगी, मच्छरों ने परेशान किया’। मासकीटो डिस्ट्रायर लगा बेड पंखे के नीचे किया गया लेकिन कुछ ठीक न लगा। भावनाओं को न छिपा पाने की मेरी आदत ने मुझ से कहलवा ही दिया – ‘बेटा यहां इस बेड पर लेट कर मुझे ऐसा लगता है जैसे सड़क के किनारे फुटपाथ पर लेटा हूं और मुझे घर से निकाल दिया गया है।’ बेटे के चेहरे पर आश्चर्यचकित हो जाने के भाव थे लेकिन प्रतिक्रिया कोई नही हुई।
छुट्टी का दिन बेटा घर पर ही था, शाम के समय किसी काम से घर के बाहर गया लौट कर आया तो पाया कि मेरा बेड लिविंग एरिया से गायब है।अचंभित होकर सेकेंड बेडरूम की ओर निगाह दौडाई, देखा मेरा बेड वहां लगा दिया गया है।
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अश्वनी कुमार जायसवाल कानपुर 9044134297