सृष्टि विकास
देखिए सृष्टि विकास की ओर बढ़ता यह मन्द कदम
कितनी जुर्रत जोखिम उठाने होते है नये आगाज को
प्रेम पथ का पर्थिक भी सिर पकड़ बैठ जाता बरबस
गड़गड़ाता विषमताओं का घनघोर बादल रह रह कर
कितनी सकारात्मक होती है लगाना लगन प्रणय से
मन बुझा बुझा सा बस चारों ओर धुँआ ही धुँआ होता
फिर जीवन यात्रा में प्रेम रीति को निभाना ही होता है
पकड़ उँगली प्रिय की राह चलते जहर भी पीना होता है