सृष्टि के कण कण में
सृष्टि के कण कण में तुम हो, हर प्राणी में प्राणों की गुंजन हो
तुमसे सकर चराचर जग सारा, तुम ही अस्तित्व और संहारण हो
तुम पूजन में आराधन में हो, सजदा इवादत वंदन में हो
तुम अदृश्य निराकार में, तुम ही प्रतीक साकार चिन्ह हो
तुम ही कर्ता श्वांसों की गति में, हो विवेक तुम हरे मति में
तुम ही प्रीत की परिभाषा जो, संगीत में गीतों की भाषा हो
सुर लय ताल वाद्य में बजते, तुम सरगम रागों में सजते
ज्ञान गहन तुम ही सत्य हो, शाश्वत सनातन मूल अर्थ हो
तुम वेदों में लिखा सार हो, कुल सृष्टि का तुम आधार हो
तुम ही मंत्र यंत्र विधि हो, मेरे जीवन की तुम ही निधि हो
शास्त्रों ग्रंथो में तेरा ही वर्णन, कृपा तुम्हारी सब ही अकिंचन
तुम शब्दों में बंध जाते, भाव विभोर हो स्वयं ही गंवाते
तुम ही चित्र सचित्र सब लेखन, कवि कविता तुम आलेखन हो
वर्ण व्यंजन तुम ही मात्रा हो, प्राणी के जीवन की तुम ही यात्रा हो