*सृजन*
साहित्य का सृजन, एक कला है अद्भुत,
शब्दों से हो दोस्ताना तो, मन हो जाता अभिभूत
अपने अपने समय के विचारों का खजाना है,
और कहीं कहीं आम जिंदगी का ताना बाना है।
साहित्य समाज का आईना होता है,
आईने में सच्चाई का सामना होता है।
कभी बड़ा ईमानदार और वफादार होता है,
और साहित्यकार अपने पर आ जाए तो
बड़ा तीखा वार होता है।
ऐसे ही तीखे प्रहारों ने समाज को गहरी नींद से जगाया है,
क्या थे, क्या हो गए हैं,एहसास कराया है।
प्रत्येक साहित्य का अपना चरित्र होता है,
सुसाहित्य हमेशा अच्छा मित्र होता है।
होती है उसकी अपनी एक पहचान,
मिल जाता कभी कभी समस्या का समाधान।
साहित्य का संसार है बहुत गहरा,
हर युग में लगा भिन्न भिन्न विचारों का पहरा।
साहित्य वो अमृत है जिसका मंथन हर युग करेगा,
स्वयं को ज्ञान के अथाह सागर से भरेगा।
प्रेक्षा मेहता
भीलवाड़ा (राज.)