सृजन का अस्तित्व
सृजन कभी
रुकता नहीं है
ध्वंशों के सामने भी
झुकता नहीं है
जैंसे सुबह का
उदित रवि
सन्ध्या में अस्त
होकर
पुनः दूसरी
सुबह आता है
वैसे ही सृजन
मिटता नहीं
अपने निश्चित
समय पर
पुनर्जीवन को
पाता है
अपने अस्तित्व
को बढ़ाकर
निज का संसार
रचता है
क्योंकि प्रकृति का
यही विधान है
सबसे ऊपर
करुणा निधान है