सृजन आधार के वो दिन
सृजन आधार के दिन
जुबाँ अब खोल तू नारी, तनिक कुछ बोल तू नारी,
दबा कर दर्द तू तन में, जहर मत घोल तू नारी।
नहीं वो रक्त है अपवित्र, नहीं अभिशाप के वो दिन-
सृजन का चक्र मासिक है, जहाँ को बोल तू नारी।।
सृजन का बीज अंकुरण, धरा को कष्ट कुछ होता,
मगर धरती कहाँ रोती, फ़सल जब नष्ट कुछ होता।
वही आधार हैं बनते, बड़ी मुश्किल भरे वो दिन-
फसल जब लहलहाती है, कहाँ फिर दर्द कुछ होता।।
तुम्हीं काली तुम्हीं दुर्गा, तुम्हीं तो मात जगदम्बा,
तुम्हीं धरती तुम्ही अम्बर, तुम्हीं पत्नी बहन अम्मा।
सृजन आधार तुम जननी, नही अभिशाप तुम नारी-
सृजन शक्ति समाहित हो, तुम्हीं बेटी तुम्हीं हो माँ।
फ़क़त वो चार दिन मुश्किल, सकल आधार जीवन का,
मिला वरदान है तुझको, सृजन संसार जीवन का।
बदन को स्वच्छ रखना और सुरक्षा चक्र अपनाना-
तनिक आराम तब करना, यही दरकार जीवन का।।
©पंकज प्रियम