सूफ़ीयाना
ख़ाक सी है
जिंदगी
दो घूँट सी है
जान
साक़ी बनाले जिंदगी
झलकने दे जाम ।
दुनिया को समझ
महफ़िल
हर सस्ख है
बंदा
दो नज्म उसकी लिख
जिसके प्रेम में
तू अंधा ।
मेरी दरकरार
उससे है
मेरा इनकार
उससे है
वो इश्क़ है मेरा
मेरा इकरार उससे है ।
एक दिन मिलूंगा
टूटते तारों के
बादलों में
आगोस में लेगा
मुझे
मेरा हर ज़ख्म
भरदेगा
इतंजार मुझको
ही नही केवल
वो भी बैचेन है
मिलने ..
मेरी हर सांस
तड़फती है
उसकी सांस में
गुमसुदा होने
मेरा हर लफ्ज़
निकलता है
उसके लबों पर
फ़ना होने
मैं हूँ गुलाम
उसका
वो मेरा अक़ीदा है….
खाक सी है
जिंदजी
दो गज जमीन पर
राख
वो हारनूर मेरा है
मेरी लौ हुई
बेदाग़ …..
खाक की सी है
जिंदजी
दो गज जमीन पर राख…