सूफ़ी परम्परा में स्त्रियां
सूफी परंपरा में स्त्रियां
सूफी मत जो इस्लाम धर्म का ही एक अंग माना जाता है। किन्तु इस मत में इस्लाम की भांति कट्टरता देखने को नहीं मिलती। सूफी धर्म को मानने वाले लोग उदार व कोमल स्वभाव के होते हैं।सूफियों के विचार में हिन्दू, ईसाई ,बौद्ध, पारसी आदि सभी धर्मों के सांस्कृतिक मेलजोल रहा है। इनका मूल उद्देश्य बिना किसी मध्यस्थ के मानव जाति को ईश्वर का साक्षात्कार करना होता है।सूफी लोग ईश्वर को निराकार एवं सर्वव्यापी मानते हैं।तथा इनमें मज़ार पूज्य है और तीर्थ यात्रा की भी मान्यता है।इस मत को मानने वाले ईश्वर प्रदत्त हर एक कार्य के लिए उनके प्रति कृतज्ञ रहते हैं।जैसे-
” धन सो महि पर भेजत नीरा।पलुहत सुखी भूमि सरीरा।।
कीन्हा राति मिलै सुख तासों। कीन्हा दिन कारज है जासों।।”
ये लोग अपनी मुक्ति के लिए ईश्वरीय दया को श्रेष्ठ मानते हैं – ” है आपार सागर भौ केरा।मोहि करनी को नाव न खेरा।।
है हम कहं आलम्भ तुम्हारी। तोही दया सो मुकुत हमारी।।”
सूफी परंपरा में नारी की स्थिति का चित्रण अनेक रूपों में देखने को मिलता है।उनका चरित्रांकन कहीं देवी, कहीं सुहृदय तो कहीं कठोर, कहीं प्रेमिका तो कहीं सहेली , कहीं माँ तो कहीं माँ के रूप में शत्रुवत होना आदि।इनमें नारी की स्थिति जटिलता से भरा पड़ा है।
सूफी परंपरा में स्त्रियों की स्वरूप को सरल रूप में समझने के लिए दो प्रवृत्तियों में बांट कर समझा जा सकता है।
1- व्याख्यात्मक
2- शैलीगत
व्याख्यात्मक रूप में जातिनुसार, धर्मानुसार, अवस्थानुसार, गुणानुसार, दशानुसार आदि के रूप में तो वही शैलीगत रूप में भावात्मकता, बौद्धिकता, कलात्मकता व कथात्मकता आदि रूप में।
जातिनुसार देखा जाए तो पद्मिनी, चित्रनी, शंखनी, हस्तिनी चार प्रकार की स्त्री मिलती हैं।
धर्मानुसार सूफी परंपरा में नारी के तीन भेद मिलते हैं
1 स्वकीय
2 सामान्या
3 परकीया
दशानुसार गर्विता ,दुखिता, मानवती तथा अवस्थानुसार स्वाधीन पतिका, वासकसज्जा ,उत्कंठिता,विप्रलब्धा,खण्डिता, अभिसारिका,प्रवत्स्य-प्रेयसी, प्रेषित पतिका, कलहन्तरिमा ,आगत पतिका।
सूफी परंपरा की स्त्रियां सहिष्णु होती थी ।अपने साथ साथ दूसरे की भी चिंता करती थी- ” मोहि लागि लोर परछेवा, अब हौं करौ दासी तोर सेवा”
सूफी काव्य ग्रन्थ ‘चंदायन’ की नायिका चंदा ,इस ग्रन्थ के नायक लोर से उपनायिका मैना के सौंदर्य का वर्णन कर ,अपने मनोवैज्ञानिक ज्ञान का परिचय देती है – ” सुरंग सेज भरि फूल विछावसि , कंवल भरी हँसि मैना रावसी।
अस धनि छाड़ि जो अनि तई धावा,कई सनेह तउहिं छटकावा।।”
अतः इस युग की स्त्रियों में स्त्री जनित दुर्बलता भी मिलती है।
सूफी काव्यग्रंथ ‘मृगावती’ की नायिका मृगावती स्वाभिमानी व प्रेमिका के रूप में अत्यंत कठोर दिखाई पड़ती है – ” चीर हमार देउ कस नाहीं, अउर चीर हम पहिरीन चाहीं।”
सूफी परंपरा की नायिका पद्मावती की दूरदृष्टि सराहनीय व स्तुत्य है। भारतीय नारी की गरिमामय उपस्थित की एक बेहतर उदाहरण है।इस परंपरा की ये नायिका अपने पति के संकट के समय अतिधैर्य के साथ वीरता व कुशल नेतृत्व का परिचय देती है।” दीपक प्रीति पतंग जेउँ जनम विवाह करउ न्योछावर चहु पास होई, कंठ लागि जिउ देउ।”
सूफी परंपरा की स्त्रियां सामाजिक व्यवहार एवं पारिवारिक क्षेत्र में भी अपना अहम रोल अदा करती हैं। जैसे कि ‘मधुमालती ‘ग्रन्थ की नायिका मधुमालती सामाजिक, पारिवारिक व व्यवहार कुशल दिखती है। वो इतनी सहृदयी है कि सभी प्रकार की वस्तुओं से प्रेम तो करती है ।पर साथ ही निर्जीव वस्तुओं से भी आपार स्नेह रखती है।
सूफी परंपरा की स्त्रियां अपने परिजनों के साथ-साथ जिनसे द्वेष करती हैं उन्हें भी अपने सगे संबंधी के भाँति ही व्यवहार करतीं हैं। जैसे- :चित्रावली’ ग्रंथ की नायिका चित्रावली व्यवहारिक जगत में भी कुशल है और अपने सगे-संबंधियों के प्रति संस्कारी भी।यहाँ तक कि चित्रावली अपनी सौत से अथाह द्वेष रखने के बावजूद भी उसे अपनी बहन मान लेती है।
सूफी ग्रन्थ ‘हंसजवाहिर’ की नायिका भी ,जिसका जन्म स्थान तो विदेश है पर भारतीय संस्कृति से ओतप्रोत है। वह वियोग में डूबी रहती है फिर भी उसे सत की चिंता है।वह कहती है – ” हौं बिनु ज्ञान अहौ सठ भौरी, सत रखा व सहाय कर मोरी।”
सूफी स्त्रियां ईश्वर में आस्था भी रखतीं है।वें अपनी कार्य सिद्दी के लिये मंदिर जाती हैं और आराधना भी करती हैं।जैसा कि ‘चंदायन’ की चंदा वर के लिए मंदिर जाती है और सूर्य जैसे वर की कामना करती है। यही नहीं ‘मृगावती ‘ की नायिका मृगावती भी ईश्वर में विश्वास रखती है।
इस परंपरा की स्त्रियां कोमल स्वभाव की होती हुई लज्जाशील होती हैं। जैसा कि पद्मावती जिसमे प्रिय मिलन की उत्कंठा तो है परंतु लज्जा ने उसे बेड़ियों में जकड़ रखा है।”संवरी सेज धनि भई मन संका , ठाढ़ी तेवानि टेक्क़ीर लंका।”
मधुमालती में भी लज्जा देखने को मिलती है।
” कहेहु न लाज केहु एही पीरा”
सूफी स्त्रियां अपने प्रति किये गए उपकार के प्रति कृतज्ञ होती हैं। कृतज्ञता में प्राण तक कि भी चिंता नहीं रखतीं।
इस परंपरा की स्त्रियां कुशल गृहणी भी होती हैं। उनमें कला प्रियता भी होती है।जैसा कि ‘चित्रावली’ की नायिका चित्रावली कलाकार के साथ-साथ कलाप्रिय दोनों है।वह स्वयं की भी चित्र बना लेती है।
इस परंपरा की स्त्रियां ज्योतिषी भी होती हैं। जैसा कि ‘चंदायन’ की चंदा लोर के संग पलायन करते समय वृहस्पति से ज्योतिष गणना करके शुभ मुहूर्त की गणना करती है।” मीन राशि जो कहई जाई, सिंह परोसी नियर होई आई।”
इस परंपरा की स्त्रियों में सतधर्मिता भी होती है।जैसा कि ‘मधुमालती’ की नायिका मधुमालती सतवंती नारी है ।वह सब कुश त्यागने को तैयार होती है परंतु ‘सत’ नहीं।
” जग जीवन जग परिहरहिं जिन्ह सत उपर चाऊं।”
अतः सूफी परंपरा की स्त्रियों की समवेत अध्ययन देखें तो इस परंपरा की स्त्रियां पतिव्रता, समर्पिता, एक निष्ठता, विनम्रता, क्रोध व कठोरता के साथ -साथ हर एक कार्य ,क्षेत्र ,कला विज्ञान आदि सभी में पूर्णता को प्राप्त की हुई पारंगत दिखती हैं।ये सामाजिक, राजनैतिक, आध्यात्मिक,वैज्ञानिक सभी रूपों में दक्ष दिखती हैं।