* सूर्य स्तुति *
ड़ा अरुण कुमार शास्त्री
” एक अबोध बालक _ अरुण अतृप्त ”
* सूर्य स्तुति *
तेरी वजह से सृष्टि के
संसाधन सब है मिलते
तेरी वजह से प्रकृति में
फूल ही फूल हैं खिलते
सूरज बाबा सूरज बाबा
तू सदा मेरे साथ रहे
मेरे सर पर सदा तेरा
हाथ रहे सूरज बाबा तू
सदा मेरे साथ रहे
सूरज बाबा तू
सदा मेरे साथ रहे
तेरे कारण जग सन्चालित
तेरे दम से जीव हैं जीवित
वायु के आवागमन का
व्यवहार बना है तुमसे नियमित
तुम ही नियमन तुम ही नियंता
तुम ही सबके पालन कर्ता
तेरी वजह से सृष्टि के
संसाधन सब है मिलते
तेरी वजह से प्रकृति में
फूल ही फूल हैं खिलते
सूरज बाबा सूरज बाबा
तू सदा मेरे साथ रहे
हम प्राणी तो निपट अबोधी
तुम हो सब वेदों के बोधि
अनपढ़ औघड़ अभिमानी हम
तुम से ही प्रचलित नीति नियम सब
तुम हो तो समय चक्र है
तुम हो तो ऋतु चक्र है
दिन का ढलना दिन का उगना
बिन तेरे ये सब अनघट सपना
तेरी वजह से सृष्टि के
संसाधन सब है मिलते
तेरी वजह से प्रकृति में
फूल ही फूल हैं खिलते
सूरज बाबा सूरज बाबा
तू सदा मेरे साथ रहे
मेरे सर पर सदा तेरा
हाथ रहे सूरज बाबा तू
हमेशा मेरे साथ रहे
सूरज बाबा तू
हमेशा मेरे साथ रहे